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सांविधानिक विधि

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के खिलाफ 226 के तहत रिट याचिका

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 25-Aug-2023

मैसर्स होटल द ग्रैंड तुलसी और 15 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

"वैकल्पिक उपाय का अस्तित्व अपने आप में उच्च न्यायालय को कुछ आकस्मिकताओं में अनुच्छेद 226 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से नहीं रोकता है।"

मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर, न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने कहा है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत न्यायिक समीक्षा की शक्ति को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 (NGT) की धारा 22 द्वारा समाप्त नहीं किया गया है

  • उच्च न्यायालय ने मेसर्स होटल द ग्रैंड तुलसी और 15 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में यह टिप्पणी दी।

पृष्ठभूमि

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के एक आदेश को अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
  • इसे मुख्य रूप से इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि NGT ने याचिकाकर्त्ताओं को कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर प्रदान किये बिना आदेश पारित किया है।
  • याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आदेश और जारी किये गए डिमांड नोटिस प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पूरी तरह से उल्लंघन हैं और रद्द किये जाने योग्य हैं।
  • प्रतिवादी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्त्ता अनिवार्य रूप से NGT के आदेश से व्यथित हैं जो NGT अधिनियम की धारा 22 के तहत अपील योग्य है।
    • और इसलिये, याचिकाकर्त्ताओं के लिये प्रभावी वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता के मद्देनजर रिट याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।

न्यायालय की टिप्पणी

प्रभावी और प्रभावशाली वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर उच्च न्यायालय आम तौर पर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं करेगा, एक वैकल्पिक उपाय का अस्तित्व उच्च न्यायालय को कुछ आकस्मिकताओं में अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से नहीं रोकता है।

उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार

  • अनुच्छेद 226 के तहत:
    • खंड 1 उच्च न्यायालय को मूल अधिकारों के प्रवर्तन और अन्य उद्देश्यों के लिये किसी भी व्यक्ति या किसी भी सरकार को बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण सहित आदेश या रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
    • इस अधिकार का प्रयोग उस उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके अधिकार क्षेत्र में कार्रवाई का कारण उत्पन्न हुआ है।
  • अनुच्छेद 227 के तहत:
    • खंड 1 में कहा गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन सभी क्षेत्रों में सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर अधीक्षण देना होगा, जिनके संबंध में वह क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है।

न्यायिक समीक्षा

  • न्यायिक समीक्षा नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत का एक अंग है जिसका प्रयोग किसी भी प्रशासनिक प्राधिकारी द्वारा शक्ति के दुरुपयोग या शक्ति के आवश्यक अनुप्रयोग की विफलता को सुनिश्चित करने के लिये किया जाता है।
  • किसी प्रशासनिक कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा करने के लिये उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया जाता है।
  • यह किसी कानून में मौजूदा त्रुटियों को सही करने या संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करने पर उन्हें असंवैधानिक घोषित करने के लिये लागू मूल संरचना सिद्धांत का एक अभिन्न अंग है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal (NGT)

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal (NGT) की स्थापना राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत की गई थी।
  • इसकी स्थापना पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये की गई थी।
  • इसकी शक्ति में पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों को लागू करना, राहत प्रदान करना , मुआवज़ा और अन्य प्रासंगिक मामले शामिल हैं।
  • NGT के निर्णय बाध्यकारी होते हैं। इसके पास अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति है जिसे बाद में 90 दिनों के भीतर उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
  • यह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC) में निहित प्रक्रिया से बंधा नहीं है, यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है।
  • ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बाद, भारत एक विशेष पर्यावरण अधिकरण स्थापित करने वाला विश्व का तीसरा देश बन गया है

ऐतिहासिक मामले

इस मामले में न्यायिक समीक्षा की शक्ति से संबंधित निम्नलिखित ऐतिहासिक निर्णयों का हवाला दिया गया:

  • एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ (वर्ष 1997):
    • विधायी कार्रवाई पर न्यायिक समीक्षा की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय में और अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय में निहित है, जो संविधान की एक अभिन्न और आवश्यक विशेषता है, यह इसकी मूल संरचना का हिस्सा भी है।
    • विधानों की संवैधानिक वैधता का परीक्षण करने की उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय की शक्ति को कभी भी बेदखल या बाहर नहीं किया जा सकता है।
  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय अधिवक्ता बार एसोसिएशन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2022):
    • भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत उच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा की शक्ति NGT अधिनियम की धारा 22 द्वारा समाप्त नहीं होती है और अप्रभावित रहती है।